शुक्रवार, 9 दिसंबर 2016

कालेधन की बाढ़ और चंद आँसू !

काला धन बड़ा ही कमजोर निकला ! एक ही डंडे से डरकर बाहर आ गया।लम्बे समय से बोरियों में भरे-भरे वैसे भी उसका दम घुट रहा था।मौक़ा मिलते ही वह गंगा में तैरने लगा,सड़क पर नाचने लगा।नोटों की नदियाँ बहने लगीं।ऐसी बाढ़ में कुछ गरीबों ने भी फ़ायदा उठा लिया।आँखों में बची हुई दो-चार बूँदें बहाने का उन्हें भी बहाना मिल गया।कालेधन के इस तरह एकदम से सामने आ जाने से रामराज्य आने की आशंका पैदा हो गई है।जो लोग हरे और लाल रंग के नोटों के पीछे अब तक भाग रहे थे,वे अब पीछा छुटाने में लग गए हैं।पता चला है कि जिन नोटों का रंग छूट रहा है,वे ही अब लम्बी रेस के घोड़े हैं ।सफ़ेद मुद्रा तो पहले से ही रंगहीन थी,अब प्राणहीन होकर कतार में गिर रही है।कालिख-पुती मुद्रा सफ़ेद होने पर उतारू है।सुना है कि रंग छोड़ने और बदलने वाली मुद्रा ही असली है।गिरगिट इसीलिए नए जमाने का देवता है।लोग हैं कि कतारों में लगकर भी बदरंग होना चाहते हैं।
काला-धन हमेशा से सेलेब्रिटी रहा है।रैंप से उतरकर अब वह सड़क पर चलना चाहता है।सफ़ेद है कि मुँह छुपाए घूम रहा है।कल तक जिस काले धन के पीछे वह पड़ा हुआ था,आज कतार में उसी के पीछे खड़ा है।कातर को कतार में आने के लिए अतिरिक्त मेहनत की ज़रूरत नहीं पड़ती।एक कदम चलकर ही वह इस गति को और सौभाग्य हुआ तो अंतिम गति को प्राप्त हो सकता है।कतार में होना ही अनुशासन में होना है।अनुशासित व्यक्ति देशप्रेमी होता है।वह कोई सवाल नहीं करता।कतार भीड़ बन जाए तो अराजक और देशद्रोही हो जाती है।ऐसे में व्यवस्था को आगे आना पड़ता है।वह चाहती है कि कतारें कभी खत्म न हों।हर कतार बताती है कि देश में सरकार है।अस्पताल और बैंक से होते हुए यही कतार अंततः मतदान-स्थल तक चली जाती है।इसलिए कतार का नियंत्रित होना ज़रूरी है।कतार होगी तभी 'गाँधी का आखिरी आदमी' पहचानने में सरकार को सहूलियत होगी।वर्ना वह उसके आँसू कैसे पोंछ पाएगी ?

लाइन में लगे लोगों को काले रंग का टीका लगाने का फ़ैसला बेहद समझदारी है।इसे माथे के बजाय उँगली पर इसलिए लगाया गया कि वोट देते समय वाली फीलिंग नोट लेते समय भी रखें।कतार में वोट देना ही केवल देशभक्ति नहीं है,नोट लेते समय भी इसे महसूसें।वोट देते और नोट लेते समय कालिख़-पुती रियाया सरकार के समकक्ष होती है।कतार में खड़े सभी लोग स्याह होंगे तो सरकार पर भेदभाव का आरोप भी नहीं लग सकता।

कुछ लोग लाइन में खड़े-खड़े गिर गए।कुछ उठे भी नहीं।इससे उनमें जज्बे की कमी झलकती है।ये लोग भूख-प्यास से नहीं 'देशभक्ति' में दिनोंदिन हो रहे ह्रास के शिकार हुए हैं।सौ-पचास रूपये निकालने के लिए दुश्मन-सीमा पर तैनात सिपाही जैसा जज्बा होना चाहिए।जब वह अपनी 'देशभक्ति' पूरी निष्ठा से साबित करता है तो अपने पैसों के लिए लाइन में लगकर मर-खप जाना कतई बुरा नहीं है!हाँ,कुछ सावधानियाँ ज़रूर बरतनी चाहिए।लाइन में जोश बना रहे,इसके लिए बीच-बीच में 'भारत माता की जय' बोलते रहें और भूख-प्यास की अधिकता होने पर योगी बाबा का चमत्कारी शहद चाँटते रहें।इससे नोट मिलने की संभावना तो बढ़ेगी ही,'देश-विरोधी' बट्टे से भी बचेंगे।साथ ही गीता में अर्जुन को दिया भगवान कृष्ण का कहा भी चरितार्थ होगा;जिसमें उन्होंने कहा था कि यदि जीते तो राज्य मिलेगा और मृत्यु हुई तो यश।लाइन में खड़े हर व्यक्ति को यह सूत्र याद रखना चाहिए।वह कतार से नोट या देशभक्ति में से कुछ तो कतर कर लाएगा ही।

नोटबंदी से किसी को परेशानी नहीं है।सभी राजनैतिक पार्टियाँ सफेदी से पुती हुई हैं।इसलिए उनका कुछ  हमें दिख नहीं रहा।लोग खामखाँ अपनी स्याह उँगली उनकी तरफ उठा रहे हैं।वैसे भी चुनाव नोट से नहीं चोट से जीते जाते हैं।कालेधन और आतंक पर चोट हो गई है।जल्द ही राम और गाय को मलहम की ज़रूरत पड़ेगी।ये चोटें गहरी हैं।इनके भरने से ही सत्ता की कुर्सियाँ उगेंगी।
फ़िलहाल आम जनता परेशान बिलकुल नहीं है बल्कि वह अपनी ख़ुशी का इज़हार कर रही है।यह सब काली-पट्टी बांधे न्याय की देवी को नहीं दिखाई दे रहा है।काले धन वाले सो नहीं पा रहे हैं और आम आदमी कतार में जाग रहा है।देश मजे में है,इस बात की मुनादी राजा ने ताली पीटकर कर भी दी है।

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