लोग अचानक फ़कीर बनने पर उतारू हो गए हैं।क्या राजा,क्या प्रजा,सब मोह-माया त्याग रहे हैं।सब कुछ छोड़-छाड़कर लोग कतारों में खड़े हैं।खाली जेबें जीवन के प्रति वैराग्य पैदा कर रही हैं।कोहराती शाम में मूँगफली खाने तक की लालसा नहीं रह गई है।जी चाहता है कि धुनी रमाकर जंगल की ओर निकल चलें।खाली पेट और खाली थैले डिजिटल दुआओं से स्वतः लबालब हो जाएँगे।इससे उजाड़ और बियाबान होती बागों में भी बहार आएगी।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
चुनावी-दौरे पर नेताजी
मेरे पड़ोस में एक बड़का नेताजी रहते हैं।आमतौर पर उनकी हरकतें सामान्य नहीं होती हैं पर जैसे ही चुनाव की घोषणा हुई , उनकी...
-
नए साल से बड़ी उम्मीदें थीं।एक साथ कई संकल्प उठा रखे थे।अभी तीन दिन भी नहीं बीते थे कि एक - एक कर सारे संकल्प खेत हो...
-
बीते दिनों मैं अफ़सर बनते-बनते रह गया।इस बात का मुझसे ज़्यादा मेरे दोस्तों ने बुरा माना।दिन में दो बार मेरा हाल-पता लेने वाले अब मेरा फ़ोन ...
-
पिछले दिनों साहित्य में रजनीगंधा की खूब चर्चा रही।सभी इसकी मौसमी - महक से आसक्त थे।कुछ दूर से तो कुछ साहित्यिक - ज़र्दे क...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें