गुरुवार, 26 मार्च 2015

अब किसकी भैंस खुलेगी ?

अभी तक सरकार बहादुर ही हमसे अपने मन की बात करते थे और हम चाहकर भी अपनी बात नहीं कर पा रहे थे।अब माननीय न्यायालय ने कह दिया है कि सोशल मीडिया पर हम जमकर अपनी भड़ास निकाल सकते हैं।इससे सब अपने मन की बात कह सकेंगे।सरकार के कुछ लोग इस कदम को लोकतंत्र के लिए उचित नहीं मानते।उनका मानना है कि इससे उनकी जो थोड़ी-बहुत पर्दादारी है,खुलकर बाहर आ जायेगी।लोग बेख़ौफ़ होकर लिखेंगे तो कुछ भी लिख डालेंगे।उनके भी बाल-बच्चे हैं और सारे कारनामे यदि सोशल मीडिया पर ऐसे ही आते रहे तो किसी दिन वे भी डिसलाइक का बटन दबा सकते हैं।इससे उनकी बड़ी थू-थू होगी।पर अपुन की सोच ज़रा हटके है.इससे निकट भविष्य में रोजगार की बड़ी सम्भावनाएं है.कुछ लोग सुपारी लेखन में भी सक्रिय हो जायेंगे.
कुछ समय पहले नवाब साहब की भैंसें खो गई थीं,तो राज्य का पूरा अमला उनकी सुरक्षा के प्रति चिंतित हो उठा था।जब तक उनका खूँटा बहाल नहीं हुआ,पूरी व्यवस्था तबेले में आ गई थी अब उनके या सरकार के खिलाफ लिखकर हम कौन-सी भैंस खोल लेंगे ?अगर खोल भी ली तो उनको ऐसी आपदाओं से निपटने का पूरा अनुभव है।सरकारें जब किसी दैवीय आपदा से नहीं घबरातीं,फ़िर कुछ निठल्ले लोग यदि सोशल मीडिया पर दो-चार कमेन्ट या दस-पाँच लाइक ठोंक भी देंगे तो क्या होगा ?खोई हुई भैंसें यदि पकड़ में आकर फ़िर से पगुराने लगती हैं तो ऐसे लोगों को सुधारने के लिए भी चारा डाल दिया जायेगा।बस,अब चारे का ही एक्स्ट्रा खर्च होगा।भैंस और सरकार तो अपनी जगह पर ही कायम रहेगी।
सोशल मीडिया पर लिखने को लेकर भी कुछ लोग चकराए हुए हैं।उन्हें लगता है कि उनके हाथ में लट्ठ पकड़ा दिया गया है कि वे चाहें जिस दिशा में उसे भांज सकते हैं।यह सरासर गलत है।एक धारा खत्म हुई है,पुलिसिया विचारधारा नहीं।कोई कितने ही लट्ठ घुमा ले,आखिरी लट्ठ उसी का बजेगा।व्यवस्था को बिगाड़ने का काम आम आदमी के हाथ में कभी नहीं आएगा।इसके लिए पहले से ही कई लोग जुटे हुए हैं।नए नियम से उनके इस पुश्तैनी धंधे पर किसी तरह की कोई आँच नहीं आई है।फ़िर भी अगर आप इंटरनेट की आज़ादी के नाम पर ज़श्न मनाना चाहते हैं तो मनाएं,हमारे पारंपरिक लोकतंत्र को इससे क्या फर्क पड़ने वाला !


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