बुधवार, 19 जून 2013

सेकुलर होने का मौसम !

'कल्पतरु एक्सप्रेस' में १९/०६/२०१३ को
'जनवाणी' में १९/०६/२०१३ को


 


सेकुलर जी बड़ी जल्दी में थे। मिलते ही कहने लगे कि अभी उनके पास समय का घोर अभाव है। हमने उनसे अपनी दोस्ती का वास्ता दिया कि बड़े दिनों बाद आप काम-काज से खाली मिले हो,थोड़ा बतिया लेते हैं। हमारी बात सुनकर वे एकदम से गंभीर हो गए और अपने माथे पर चिंता की कई लकीरें खींचते हुए बोले,’आप हमें खाली समझ रहे हैं,जबकि इस समय हमें खुद से ज़्यादा देश और समाज की चिंता है। अगर हम अभी नहीं चेते तो बड़ा अनर्थ हो जायेगा। इसलिए फ़िलहाल हमें देशसेवा करने से फुरसत नहीं है। ’

उनकी ऐसी दशा को देखकर अपन पशोपेश में पड़ गए। अगर और कोई बात होती तो उसे टाल सकते थे,पर बात मुलुक और समाज को बचाने की थी,सो अपन भी द्रवित हो गए। सेकुलर जी के सुर में सुर मिलाते हुए हमने उवाचा,’आपके रहते यह गज़ब कैसे होने जा रहा है ?हम बातें तो बाद में भी कर लेंगे,पर इस देश पर कौन-सी और कैसे आफत आ गई है ?अब भाईचारे के नाते तो यह खुलासा ज़रूरी है क्योंकि आपकी तरह अपन भी देश की चिंता में हर पल दुबले रहते हैं। ’

हमारे सांत्वना और सहानुभूति के शब्द सुनकर सेकुलर जी बुक्का-फाड़ कर रोने लगे। उन्होंने सिसकते  हुए अपना बयान दर्ज़ कराया,’देश के सेकुलर ढाँचे को ध्वस्त करने के लिए अचानक गिरोहबंदी तेज हो गई है। सबसे दुःख की बात यह है कि इस काम में हमारे सहयोगी सबसे आगे हैं। वे ऊपर से तो दुआ करते हैं कि सेकुलर जी जिंदा रहें पर दवा ऐसी देते हैं कि हम समूल नष्ट हो जांय। ’ ‘पर बहुत समय से तो आप उनके साथ हैं फ़िर भी उन्हें पहचान नहीं पाए ?’अपन ने विस्फारित नेत्रों से सवाल किया। सेकुलर जी ने इसका रहस्योद्घाटन करते हुए बताया कि तब वह नादान थे और अपनी जिम्मेदारी को ठीक से समझ नहीं पाए थे। आज वे इस योग्य हो गए हैं कि देश को उनकी सेवाओं की कभी भी दरकार पड़ सकती है। यह तो अच्छा हुआ कि चुनाव जल्द आ गए नहीं तो अभी तक वे दुश्मनों की ही गोदी में बैठे रहते।

अभी भी हम मामले को पूरी तरह समझ नहीं पाए थे। हमने अंदाज़ लगाते हुए ही पूछ लिया,’क्या कोई सांप्रदायिक ताकत आपको परेशान कर रही है ?’ उन्होंने बिलकुल सहज होते हुए उत्तर दिया,’हमारा होना तभी सार्थक है,जब सांप्रदायिक ताकतें बची रहें । वे जितना मज़बूत होंगी,उससे अधिक गति से हमें मजबूती मिलेगी। हम तो स्वयं चाहते हैं कि वे बराबर बनी रहें ताकि उनसे लड़ने का अवसर हमें मिलता रहे । इस बहाने हम देश-सेवा में अपना योगदान कर सकते हैं । देश के लिए जब ज़रूरी हुआ ,हमने टीका लगाया अब टोपी लगाने का समय है तो हम कैसे रुक सकते हैं? देश को हमारी सख्त ज़रूरत है। ’

सारी बात अब हमारी समझ में आ गई थी और सेकुलर जी की आँखों में चमक भी। उनके चेहरे पर परम-शांति के लक्षण देखकर हमें भरोसा हो गया कि अब चाहे जो हो जाए,देश सही-सलामत रहेगा। हमने देखा,तब तक सेकुलर जी उस झुण्ड की ओर बढ़ गए थे,जिधर से आवाजें आ रही थीं,’देश का नेता कैसा हो,बस बिलकुल सेकुलर जैसा हो !’


'हरिभूमि ' में २१/०६/२०१३ को



 

कोई टिप्पणी नहीं:

अनुभवी अंतरात्मा का रहस्योद्घाटन

एक बड़े मैदान में बड़ा - सा तंबू तना था।लोग क़तार लगाए खड़े थे।कुछ बड़ा हो रहा है , यह सोचकर हमने तंबू में घुसने की को...