शुक्रवार, 31 मई 2013

खाली गिलास तो भरने दो !


जनसंदेश में ३०/०५/२०१३ को !
 


अभी पिछले दिनों यूपीए के लोगों ने मिल-जुलकर बड़े जतन से सरकार को नौ साल तक खींचने का औपचारिक रूप से जश्न मनाया ।इस जश्न की खास बात यह रही कि विपक्ष के बार-बार टोकने के बावजूद सरकार के जो मुखिया, अभी तक मौन ओढ़े हुए थे,उनका मुँह खुल गया।उन्होंने विपक्ष के सारे तीर अपने एक ही वार से भोथरे कर दिए।लोगों की नाहक टोकाटाकी का जवाब देते हुए उन्होंने राज खोला कि जब वे सत्ता में आए थे,उन्हें खाली गिलास मिला था।इसका मतलब केवल गिलास नहीं अपितु जो गिलास मिला वह रिक्त था और वे उसे तभी से भरने में लगे हैं।यह उद्घोषणा सुनते ही सभी आलोचकों को सांप सूंघ गया ।उन्हें अचानक अपनी इस तथ्यात्मक भूल का अहसास हुआ।

सरकार के मुखिया की पीड़ा का जब हमने भी गहरे से आत्म-मंथन किया तो उन पर आ रही सारा गुस्सा काफूर हो गया ।सारा मीडिया और विपक्ष उनके ऊपर अनजाने में ही टूटा पड़ रहा था ।किसी ने उनके गिलास में झाँकने की जहमत नहीं उठाई।अब जब गिलास पूरा खाली था तो उसके भरने में वक्त तो लगेगा ही।आम आदमी तक सौ में से पन्द्रह पैसे भेजने वाली सरकार ने अपने खाली गिलास को कहीं अधिक गति से भरा फ़िर भी बीच-बीच में कॉमनवेल्थ,टूजी,कोयला जैसे लीकेज भी तो आए।विपक्ष और मीडिया लगातार इस तथ्य की अनदेखी करता रहा और इससे जनता को गलत सूचना गई।यह तो अच्छा हुआ कि इसी बीच जश्न की रात आ गई और यह सत्य सबके सामने उजागर हो गया कि नौ साल पहले इस सरकार को खाली गिलास मिला था और वह तभी से उसे दोनों हाथों से भरने में लगी हुई है।

प्रधानमंत्री ने जब सार्वजनिक रूप से यह ऐलान कर दिया है कि वे खाली गिलास भर रहे हैं तो हम सभी को थोड़ी तसल्ली रखनी चाहिए।हमें सरकार की इस बात की प्रशंसा करनी चाहिए कि उसने अपने लिए केवल गिलास का ही चयन किया है,घड़े का नहीं।गिलास लेना चतुरता की निशानी है।जैसे ही वह भरने को हो,चुप से एक-आध घूँट भरकर उसे खाली किया जा सकता है,जबकि घड़े के साथ ऐसा नहीं है।घड़े के कभी भी भरने की आशंका होती है,गिलास की नहीं।इस तरह सरकार को घड़ा भरने का डर भी नहीं रहता है,चाहे वह जितना उलीच-उलीचकर भरती रहे।इसलिए गिलास के होने से सरकार और उसके सभी सहयोगियों को बड़ी राहत है।दो-चार लीकेज होने के बावजूद गिलास भरता भी रहता है और खाली भी।

प्रधानमंत्री मूलतः दार्शनिक किस्म के व्यक्ति हैं इसलिए गिलास वाली थ्योरी भी उनकी अपनी देन है।वे तो खाली गिलास को भरने का काम कर रहे हैं जबकि दूसरे यह देख रहे हैं कि गिलास खाली हो रहा है।अब यह आप पर निर्भर है कि उनके भरने को हम नज़रंदाज़ करें या खाली होने का ढिंढोरा पीटें।उनके अपनों के दो-चार घूँट भर लेने से गिलास खाली थोड़ी होगा.दोनों स्थितियों में फायदा गिलास और उसके मालिक का ही होगा,हम जैसे जनम-जनम के प्यासों का नहीं।

 

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