बुधवार, 12 दिसंबर 2012

आलू और लौकी दहशत में हैं !




आज बाज़ार पहुँचे तो हडकंप-सा मचा हुआ था।सब्जियों ने हमें देखते ही आपस में खुसर-पुसर शुरू कर दी।हम माजरा कुछ समझ पाते कि तभी कद्दू जी ने हमें टोंका और आगे बढ़ने से रोक दिया।हमने मौके की नजाकत समझते हुए अपने कदम वहीँ रोक दिए।कद्दू जी से हमने बाज़ार की अफरा-तफरी का कारण जानना चाहा।वे अपनी मुख-मुद्रा को गंभीर आयाम प्रदान करते हुए,बोलेआपको कुछ पता भी है ? हमारे परिवार के दो सदस्य अचानक लापता हो गए हैं।
हमने विस्फारित नेत्रों से उनकी ओर देखा तो वे आगे बताने लगे,’जब से संसद में हुई ज़बरदस्त बहस में आलू जी और लौकी जी को घसीटा गया है,तभी से वे दोनों दहशत में हैं।आज जैसे ही उन दोनों बेचारों को खबर लगी कि विदेश से कोई वॉलमार्ट जी उनका वारंट लेकर आ रहे हैं,वे पता नहीं कहाँ गायब हो गए हैं ?’हमने कहा, ’तो इसमें दिक्कत क्या है ? वे अभी तक देसी-स्तर पर ही अपना जलवा दिखा रहे थे,अब उनको अंतर्राष्ट्रीय-स्तर पर अपना हुनर दिखाने का मौका मिलेगा।इसमें घर से भाग जाने का क्या तुक है ?’
अब तक हमारे इर्द-गिर्द भिन्डी,बैंगन,गाजर,गोभी और टमाटर हिम्मत जुटाकर एकत्र हो गए थे।कद्दू जी कुछ बोलते,इससे पहले ही बैंगन जी ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया।उन्होंने व्यवस्था का प्रश्न उठाते हुए कहा,’असल समस्या उनके भाग जाने की नहीं है।उनके इस कदम से सारी बिरादरी में हमारी नाक नीची हुई है।अभी तक कई सालों से हम कई बार इधर से उधर होते रहे हैं मगर मजाल कि हमें कोई डर लगा हो।यहाँ तक कि कई लोग थाली में बैंगन की उपाधि से अपने को गौरवान्वित महसूस करते रहे हैं।आलू और लौकी ने इस परंपरा को तोड़कर ठीक नहीं किया है।
हमने बैंगन जी से असहमति दर्शाते हुए उन्हें तर्क देकर चुप कराया कि अगर आप अब तक अपनी लुढ़कन-क्षमता के लिए जाने जाते रहे हैं तो क्या बदलते और विकसित होते देश में आलू और लौकी अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन नहीं कर सकते ?अगर उनमें कुछ संभावनाएं हैं तो वे भी ऐसा कर सकते हैं।आखिर हम अब नियंत्रण-मुक्त अर्थ-व्यवस्था के ज़माने में आ गए हैं।हमारा यह तर्क टमाटर जी और गोभी जी को बहुत भाया और वे भी अपनी संभावनाओं को लेकर उत्साहित हो गए।भिन्डी जी और गाजर जी की मुख-मुद्रा से समझ आया कि उनको यह तर्क जंचा नहीं ।
हम बाज़ार से निकलकर बाहर आए ही थे कि एक कोने में आलू जी  और लौकी जी दुबके हुए थे।हमने उन्हें हिम्मत देते हुए भरोसा दिलाया कि वे अपने अस्तित्व को लेकर कतई परेशान न हों और यदि कोई दूसरी समस्या हो तो बेझिझक हमसे कहें।आलू जी ने थोड़ा लुढकते हुए कहा कि सारी परेशानी यही हुई कि हम लोग अभी तक थोड़ा बच-बचाकर लुढक लेते थे पर जब से संसद में हमारी चर्चा हुई है,पूरा मीडिया हमारे पीछे हाथ धोकर पड़ा है।इससे प्रेरित होकर कुछ अन्य सदस्य भी लुढकने के मूड में हैं।देश के लोग हमें सब्जी और समोसे में तो मिलाकर खा ही रहे थे, अब संसद के अंदर भी हमें मिलाने लगे हैं।इस काम में हमारी लौकी बहन को भी ज़बरन घसीट लिया गया है जबकि ये तो बेचारी खेत में नहीं बल्कि किसान के छप्पर में ही फल-फूल लेती हैं।इतना सुनते ही लौकी जी बोल पड़ीं,’हम तो खुले आसमान में पैदा होते हैं और गाँवों में हेत-व्यवहार में यूँ ही बंट जाते हैं पर अब जब कोई विदेसिया अच्छी कीमत देकर हमें लेने आ रहा है तो बैंगन जी को आपत्ति हो रही है।आप ही बताइए कि सही कीमत पाने का अधिकार केवल बैंगन जी को ही है ?’ हम तो लौकी जी के इस अचानक सवाल से निरुत्तर हो गए पर आप क्या सोचते हैं ?

12/12/12 को 'जनसन्देश' में...

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